रीढ़ की हड्डी (Your Stand)

रीढ़ की हड्डी your stand

अभी हाल ही में एक किताब पढ़ रहा था। रंगभूमि उपन्यास जो कि  मुंशी प्रेम चंद्र के द्वारा लिखित है। इसके मुख्य किरदारों में से एक किरदार है सूरदास। जब ये किताब ख़त्म हुई तो मैंने अपनी छोटी सी नोट बुक में इसके बारे में जल्दी जल्दी से लिख लिया। लिखा इसलिए कि कुछ समय बाद धीरे धीरे चीजें दिमाग़ से उतर जाती है। हाँ फिर कुछ समय बाद वक्त मिले तो उन नोट्स को पढ़ने के बाद दो चार और विचार सामने आते है। एक छोटा सा paragraph पन्नो में तब्दील हो जाता है। अब आते है अपने मुख्य टॉपिक पर रीढ़ की हड्डी यानी कि your own stand in your own principled life.

सूरदास अपनी आँखो से देख नही सकता है। अपने जीवन यापन के लिए भीक्षा माँग कर गुज़ारा करता है। बनारस के बग़ल पांडेपुर  नामक गाव में इसका अपना झोंपड़ा है। थोड़ी सी  बंजर ज़मीन है, जिसमें गाव के पशु चरने के लिए आते है। जब भी कोई सूरदास से पहली बार मिलता है, तो उसे अंधा और भिखारी मान  कर उसका अपमान ही  करता है। परंतु उसके गाव और साथियों के बीच में उसकी छवि एक धर्मात्मा के रूप में ही  थी। जो गाव के सत्संग में बढ़िया  बढ़िया भजन गाता है। गाव में आने वाले तनाव और संघर्ष पर अपना खुल के विचार रखता था। बिना किसी के डर के। ये विचार और वचन उसकी रीढ़ की हड्डी यानी की उसके stand का एक प्रमुख हिस्सा थे। 

रंगभूमि उपन्यास रीढ़ की हड्डी your stand
रंगभूमि उपन्यास

सूरदास का stand उसके  जीवन का केंद्र बिंदु था। जिसे कोई भी कितना करके हिला नही सकता था। इसी स्टैंड के मुताबिक़ वो अपनी गाव की बंजर ज़मीन को बनारस के उद्योगपति को बेचने से इनकार कर देता है। मतलब कि ख़ाली ज़मीन है, इसपे गाव के जानवर आकर चरते है। यात्रा के समय में दूर दूर से यात्री टेंट डाल कर यही पर ठहरते है। जब ये ज़मीन बिक जाएगी, तो ना इन पशुओं के पास चरने की ज़मीन होगी ना या किसी गरीब यात्री के रूकने की जगह।

ऊपर से ये ज़मीन तो उसकी अपनी ख़रीदी हुई तो थी नही। वो तो मात्र एक custodian यानी के रक्षक के रूप में इसका मालिक था। जिसका मतलब था, की जो ज़मीन उसने अपने पुरखों से प्राप्त करी, उसे वो अपने जीवन में इस्तेमाल करे और उसकी रक्षा करे। और अंत में इस ज़मीन को आगे आनी वाली पीढ़ी को समर्पित कर दे। 

रीढ़ की हड्डी your stand

दूसरी मुख्य बात थी, अगर किसी बात पर अपना मंतव्य रखना हो तो बिना लाग लपेट के और समय और परिस्थितियों से प्रभावित हुए  बिना, सच सच बात कहता था। जीवन के शुरू से लेकर आख़िर तक उसका यही stand  बना रहा। जिसके चलते उसके कई साथी भी साथ छोड़ गए। हाँ ये बात और थी कि  वो मतलब के ही  साथी थे। और इससे प्रभावित होकर नए नए विचारो के और लोग भी इससे जुड़ते चले गए।

एक और बात थी, जब उसको कोई बात सही और न्याय संगत लगती थी, तो उसके लिए खड़ा रहता था। भले ही उसके चलते पूरे का पूरा गाव उसके ख़िलाफ़ ही ना हो जाए। एक बार उसके गाव के एक आदमी ने अपनी पत्नी को झूठे आरोप लगा कर घर से निकल देता है, तो वह उस औरत को अपने घर में शरण देता है। गाव में किसी की हिम्मत नही थी उसके पति से झगड़ा मोल लेने की। क्यू किसी के फट्टे में टांग अड़ाना। लेकिन सूरदास कमजोर और गरीब होने के बावजूद उस औरत को अपनी बहन का दर्जा देकर अपने घर में रखता है।

उसके ऊपर बाद में गाव वाले तरह तरह के आरोप लगाते थे। कई बार बहुत दुखी होता था। आँखो से आंसू छलक जाते थे। फिर भी वो अपने वचन और न्याय पर टिका रहता था। उसके गाव की ही तो औरत थी। अगर कोई मदद नही करता तो या तो वो आत्महत्या कर लेती या फिर किसी देह व्यापार वाले बाज़ार में बिक जाती। 

रीढ़ की हड्डी your stand

एक तरह से देखे तो उसका ये सब मुख्य स्टैंड उसके जीवन के केंद्र बिंदु की तरह है। जो हमेशा अडिग और अमिट  रहता है। यानी कि उसकी रीढ़ की हड्डी (stand) हमेशा सीधी रहती है।उसके आसपास के लोग उस केंद्रबिंदु के चारों तरफ़ बने हुए वृत की परिधि की तरह होते है। समय समय पर इस वृत की परिधि का आकार घटता बढ़ता रहता है। अलग अलग परिस्थिति और संकट के समय में परिधि तो बदलती रहती है, परंतु यह केंद्र बिंदु कभी भी नही बदलता है।

जब इस केंद्र के चारों और बने परिधि का आकार बढ़ता है, यानी लोग जुड़ते चले जाते है तो एक सामान्य और कमजोर आदमी के सामने आयी बड़ी से बड़ी समस्या सुलझ जाती है। कई बार इसी केंद्र के चलते उस वृत का आकार भी घटता है, यानी कि लोग साथ छोड़ देते है। परंतु सूरदास का यह स्टैंड यानी की केंद्र कभी नही बदलता।

बाक़ी लोगों का स्टैंड यानी कि  केंद्र समय के साथ बदलता रहता है, इसके चलते उनके आसपास वृत कभी नही बन पाता। परंतु सूरदास अडिग रहता है, चाहे भले ही उसके आसपास के लोग यह तक कि उसका परिवार भी उसके ख़िलाफ़ क्यू ना हो जाए।

अंत में इस website पर उपलब्ध अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करके जा सकते है। रंगभूमि उपन्यास के बारे में जानने के लिए आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *