The India Way- Books short (किताब संक्षेप हिंदी में)

Cover of the book- the india way (books short)

The India Way- Strategy for an uncertain world, जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, वर्तमान में भारत की foreign policy, कूटनीति और रणनीति को लेकर लिखी गई है। इसके लेखक है भारत के वर्तमान विदेश मंत्री ( minister of foreign affairs) श्री एस. जयशंकर। विदेश नीति में रुचि रखने वाले लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण किताब है। चुकी यह विदेश मंत्री ने अपने व्यक्तिगत आधार पर लिखी है, परंतु इससे हम भारत की भविष्य और वर्तमान विदेश नीति के बारे में अच्छे से झलक सकते है। कारण यह है कि कोई भी नीति सबसे पहले उस क्षेत्र को सम्भालने वाले व्यक्ति के द्वारा निर्धारित की जाती है। और एस. जयशंकर जी पिछले लगभग 7 सालो से पहले विदेश सचिव और फिर विदेश मंत्री के रूप में काम कर रहे है। किताब के शुरुआत में लेखक थिरुवलुवर को कोट करते हुए कहते है- बदलते विश्व में बदलते समय के साथ खुद को बदलना ही बुद्धिमता है।यानी की बदलती परिस्थितियों में भारत को बदलना ही होगा, पुराने चाल ढाल को छोड़ कर वास्तविक विश्व के हिसाब से विदेश नीति क़ायम करनी होगी। अगर भारत को तेज़ी से बदलते विश्व में फ़ायदा उठाना है तो उसे कदम उठाने ही होंगे। यहा पर इस किताब का books short ( किताब संक्षेप) देखेंगे।

The India Way किताब के ज़रिए  आप जान सकते है कि भविष्य में भारत की विदेश नीति किस करवट पलटने वाली है। इस किताब The India Way को एस.जयशंकर जी ने  8 chapters में बाटा है-

1- Lessons of Awadh- The dangers of strategic complacency 

अवध से सीख- रणनीतिक आत्म संतोष के ख़तरे 

2- The Art of Disruption- The United States in a Flatter World

विघटन/विच्छेद की कला-  बराबरी के विश्व  में संयुक्त राज्य अमेरिका

3- Krishna’s Choice- The Strategic culture of Rising Power

कृष्ण की नीति/पसंद- उभरती शक्ति की रणनीतिक सभ्यता

4- The Dogmas of Delhi- Overcoming Hesitations of History

दिल्ली का रूढ़िवाद/हठधर्मिता- ऐतिहासिक संकोच पर विजय 

5- Of Mandarin and Masses- Public Opinion and the West

मैंडरिन और जनता की बात- पश्चिमी देश और उनके विचार

6-Nimzo-Indian Defence- Managing China Rise

निम्ज़ो-इंडीयन (एक शतरंज की चाल) बचाव- उभरते चीन को अपने हिसाब से कैसे Manage करे 

7- A Delayed Destiny- India, Japan and the ASEAN  Balance

एक बहुप्रतिक्षित नियति जो देर से आई- भारत, जापान और आसियान 

8- The Pacific Indian- A remerging Maritime outlook

प्रशांत महासागरीय भारत- उभरते हुए समुद्री रणनीति पर अवलोकन 

S. Jaishankar- author ( # books short)

Lessons of Awadh—The danger of Strategic Complacency  

अवध से सीखरणनीतिक आत्म संतोष के ख़तरे 

किसी भी राज्य या समाज का सबसे बड़ा दंड है किसी नीच द्वारा उस पर शासन करना। इस चैप्टर की  शुरुआत में उदाहरण के लिए दो अवध के नवाबो को लिया गया है, ये दोनो आपस में शतरंज खेलने में व्यस्त है जबकि इनके राज्य का हिस्सा धीरे धीरे अंग्रेज अपने क़ब्ज़े में किए जा रहे है। ये आत्म संतोष  में खेल में व्यस्त है जबकि धीरे धीरे उनका राज्य ग़ुलाम बनता जा रहा है। आज के समय में पूरे विश्व में power और trade के क्षेत्र में उथल पुथल मची हुई है।चाइना सबसे बड़ी ताक़त बनने की कोशिश में है और अमेरिका अपने प्रभुत्व को समेटते हुए घरेलू मामलों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 1991 में शीत युद्ध समाप्त होने के बाद यह लगभग दूसरा समय है जब विश्व मे power equation बदल रही है। ऐसे में भारत उन दोनो नवाबो की तरह हाथ पर हाथ धर के बैठे नहीं रह सकता। इस दिशा में भारतीय रण नीतिकारो को ज़्यादा वास्तविक और धरातल पर उतरकर  सोचना पड़ेगा, ना कि romanticism के रूप में। ये romanticism वाली गलती जो हमने चीन और कुछ हद तक 1971 ke बाद पाकिस्तान से की है,उसकी सजा भारत भोग चुका है। America First और Chinese ड्रीम जैसे विचार और सोच उभार पर है। वास्तविकता के हिसाब से अपने देश के फ़ायदे को सामने रखते हुए नितीया बनानी पड़ेंगी। पाकिस्तान को बहुत समय दे दिया की उनमें सुधार आएगा। परंतु ऐसा हुआ नहीं। हम जो भी सबँध या Aliiance बनाने से बचते आ रहे है, उनके बारे में और सोचना है और उन पर कार्य करना है। sustainable developmental goals (SDG) के ऊपर ध्यान और काम भारत को ऐसे ही फ़ायदा दे सकते है जैसे चीन को MDG ने किया था। ये SDG है Digitizatiton, Industrialisation, urbanisation, rural growth, infrastructure और skills इत्यादि।

The Art of Disruption- The United States in a Flatter World

विघटन/विच्छेद की कला–  बराबरी के समय में संयुक्त राज्य अमेरिका

कभी कभी युद्ध जितने के लिए एक दो  छोटी लड़ाई हारनी पड़ती है- डॉनल्ड ट्रम्प। 2016 में डॉनल्ड ट्रम्प के बाद अमेरिका बहुत सारे सम्बंध या alliances से बाहर निकल चुका है, चाहे वो asian ट्रेड ट्रीटी हो या climate change ट्रीटी,unesco या बाक़ी सारे ट्रेड alliances। 

जबकि चीन धीरे धीरे ट्रेड surplus के दम पर पूरे विश्व में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है।ये भी कहा जाता है कि USA is fighting wars to loose but china is winning without fighting. चीन ने बहुत सारे देशों में अपना अप्रत्यक्ष क़ब्ज़ा जमा लिया है, बिना एक कतरा खून बहाए हुए। अब विश्व  unipolar से हट कर multipolar होता जा रहा है। यानी की पहले सारी शक्ति USA के हाथ में थी, लेकिन ये धीरे धीरे उसके हाथ से निकल रही है। चीन, रूस, जापान, यूरोप, भारत, ब्राज़ील, साउथ कोरिया, और आसियान के देश धीरे धीरे अपनी आर्थिक ताक़त बढ़ा रहे है। इस multipolar world में भारत को कैसे आगे बढ़ना है। आगे स्थिति और कॉम्प्लेक्स होने वाली है। भारत को कुछ parameters बनाने पड़ेंगे, और उनके साथ आगे बढ़ना होगा। नया समय नए दोस्त और दुश्मन बना कर सामने लाएगा। इस दोस्ती और दुश्मनी में कैसे बैलेन्स बनाना है, यह भारत को अपने सेट parameters के ऊपर तय करना होगा।

 Krishna’s Choice- The Strategic culture of Rising Power

कृष्ण की नीति/पसंदउभरती शक्ति की रणनीतिक सभ्यता

जो देश अपने इतिहास/भूतकाल का सम्मान नहीं करता है उसका कोई भविष्य नहीं है।भारत का इतिहास महत्वपूर्ण  रहा है। जैसी कि महाभारत, अर्थशास्त्र, भागवद गीता, आयुर्वेद चिकित्सा इत्यादि। यूरोप में लिखे गए कई सारी ऐतिहासिक किताबों, जैसे The Prince, Iliad, इत्यादि की वहाँ के देशों ने सम्मान देते हुए, उनसे सीख लेते हुए अपनीं नितिया बनाई। या फिर चाइना की ऐतिहासिक किताब हो Three Kingdoms। ऐसे में चीन के शासकों ने अपने भूतपूर्व चिंतको की बातों को अपनी वर्तमान नीति और विदेश नीति का हिस्सा बनाया हुआ है।

हमारी ऐतिहासिक किताबें हमारे भूतकाल में हए घटनाओं और उनसे उबरने की सीख देती है। ये किताबें बहुत सारी रणनितिया भी सुझाती है।किस समय और किस काल में किसके साथ कैसा व्यवहार या सम्बंध रखा जाए। भारत के नीति निर्माताओ को भी इनसे सीख लेते हुए इनमे कही गई बातों को अपनी नीति में परिलक्षित करना चाहिए। 

PM Modi and Minister S. Jaisankar (# Books short)

The Dogmas of Delhi- Overcoming Hesitations of History

दिल्ली का रूढ़िवाद/हठधर्मिताऐतिहासिक संकोच पर विजय 

अभी तक भारतीय सरकारें एक ही तरह की लकीर खींचकर उस पर चलती चली आयी है। समय के साथ बदलते परिस्थितियों में यह बदलना चाहिए था। अभी तक भारत सरकार भूत काल के तीन ग़लतियों को अपने सर पर ढोते चली आयी है, इस रूढ़िवादिता के कारण। ये तीन ग़लतियाँ है- 1947 के विभाजन का दर्द, 1950 के आस पास चीन को विश्व राजनीति में ज़्यादा महत्व देना, और जब बाक़ी सारे देश 1970 के आसपास आर्थिक सुधार ला रहे थे, तब भी कोई बदलाव ना करना। परमाणु परीक्षण में देर भी इसी रूढ़िवादिता का एक उदाहरण है।

जब जब भारत ने इस रूढ़िवादिता से कदम हटाए है, सफलता मिली है, जैसे की 1971 का युद्ध, 1992 के आर्थिक सुधार, 1998 के परमाणु परीक्षण और 2006 की न्यूक्लियर डील।  भारत को अपनी पुरानी सोच और धर्मसंकटो को छोड़ कर आगे बढ़ना होगा। कुछ निर्णय लेने होंगे जो भले ही विश्व के अधिकांश देशों को ना पसंद है। हमें यहा किसी को खुश करने के लिए नहीं बल्कि अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए निर्णय लेने होंगे।

Of Mandarin and Masses- Public Opinion and the West

मैंडरिन और जनता की बातपश्चिमी देश और उनके विचार

भारत के बारे में पश्चिमी देशों का विचार समय समय पर बदलता रहा है। और उसी सोच के आधार पर भारत को नियंत्रण में रखने की कोशिश की गई।एक प्रसिद्ध गोल्डी लाक्स की कहावत है- ना ज़्यादा गरम ना ज़्यादा ठंडा, बस उतना नियंत्रण की खाने लायक़ रहे। भूतकाल में पश्चिमी देशों ने इसी के साथ भारत के साथ व्यवहार किया, ना ज़्यादा ठंडा मतलब की इसकी हालत इतनी भी ख़राब मत होने दो कि ये ख़तरा बन जाए, जैसे की चीन के साथ युद्ध में USA द्वारा भारत की सहायता। और इसको इतना गरम या शक्तिशाली भी ना बनने दो की हमारे लिए ख़तरा बन जाए, जैसे की भारत को परमाणु परीक्षण से रोकना, 1971 युद्ध में भारत का विरोध इत्यादि।

 बदलते समय में USA और पश्चिमी देशों का प्रभुत्व कम हुआ है, परंतु इतना कम नहीं है कि विश्व की राजनीति को वो प्रभावित ना कर सके। हालाँकि वर्तमान में भारत को लेकर पश्चिमी देशों का विचार बदला है।भारत की मज़बूत लोकतांत्रिक व्यवस्था भी इसका एक कारण रही है।  हालाँकि चीन और रूस के कारण पश्चिमी देश भारत की तरफ़ गर्मजोशी हाथ बढ़ा रहे है। और भारत को इस अवसर को भुनाना चाहिए। उदाहरण के लिए QUAID की स्थापना, INDO-PACIFIC क्षेत्र की स्थापना इत्यादि।

Nimzo-Indian Defence- Managing China Rise

निम्ज़ोइंडीयन (एक शतरंज की चाल) बचावउभरते चीन को सम्भालना

बुद्धिमान लड़ने से पहले ही जीत चुके होते है जबकि मूर्ख जीतने के लड़ते है।

भारत और चीन का इतिहास काफ़ी पुराना है। चुकि पुराने इतिहास के बारे में लोगों में ज़्यादा awareness नहीं है फिर भी 1950 और उसके आसपास का भारत और चीन का सम्बंध महत्वपूर्ण है। जब दोनो देश colonisation के ख़िलाफ़ थे।एक ही मंच पर साथ खड़े हुए दिखते थे। लेकिन बाद में यह परिस्थिति बदली।और 1962 में सम्बंध सबसे नीचे चले गये। उसके बाद सम्बंध धीरे धीरे सुधारने की कोशिश की गई। 1979 में अटल जी की चीन यात्रा, 1987 राजीव गांधी का चीन दौरा, नरसिम्हा राव जी समय में Boundry Settlement वार्ता या फिर 2004-5 की Tranquility on Borders सहमति। इनके बीच में कई बार ऐसे अवसर भी आए है जब लगा कि चीन हमारे देश के उल्टा ही जा रहा है। कभी पाकिस्तान को परमाणु हथियार, कभी NSG और UN काउन्सिल में भारत की सदस्यता के ख़िलाफ़ इत्यादि।

यहा पर चीन की हर चाल का काट भारत को तैयार करके रखना होगा। और यह रणनीतिक चाल  समय काल और परिस्थिति के हिसाब से परिवर्तित होती रहनी चाहिए। चीन को लेकर हमें केवल एक क्षेत्र में नहीं बल्कि कई सारे आयामों पर तैयार रहना पड़ेगा। उदाहरण के लिए भारत को चीन को उत्तर में पहाड़ों में घेर कर रखना चाहिए और साथ ही साथ दक्षिण में अपनी समुद्री ताक़त को बढ़ावा देना चाहिए। चीन को काटने के लिए रूस, USA और ASEAN देशों से भी सम्बंध अच्छे करने चाहिए।

आयात निर्यात के मामलों में अपनी इंडस्ट्री और स्किल development को बढ़ावा देना चाहिए। आयात में कुछ कड़े टेस्टिंग और क्वालिटी इत्यादि का नियंत्रण तैयार होना चाहिए, जिससे की सस्ते और घटिया सामान भारत में ना आ पाए। और घरेलू इंडस्ट्री को नुक़सान ना पहुचा पाए।

A Delayed Destiny- India, Japan and the ASEAN Balance

एक नियति जो देर से आईभारत, जापान और आसियान 

इस चैप्टर में भारत के लिए जापान और ASEAN देशों के महत्व के बारे में चर्चा की गई है। जापान भारत के आर्थिक सहयोग में महत्वपूर्ण भागीदार रहा है। लेकिन ये भागीदारी बहुत हद तक लोन सेवा  और इन्फ़्रस्ट्रक्चर डिवेलप्मेंट तक ही सीमित है। जापानी कंपनिया भारत में कारख़ाने लगने से हमेशा से ही हिचकिचाती रही है। कारण कई है जैसे की भारत की वर्क कल्चर और जापान से एक दम अलग सभ्यता। अब समय आ गया है कि जैपनीज़ लोग अपनी हिचकिचाहट दूर करे और भारत में प्रतेक्ष निवेश को बढ़ावा दे। भारत सरकार को इस सम्बंध में महत्वपूर्ण कदम उठाने की ज़रूरत है।

ASEAN देश जो की भारत के पूर्व में आते है, जापान और भारत के बीच में एक पुल की तरह कम कर सकते है। ASEAN देश जो की एसीयन टाइगर्ज़ के नाम से भी जाने जाते है, अपने व्यापार और सम्बंध की मदद से भारत के विकाश में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते है। इसके लिए भारत की लुक ईस्ट और ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी मददगार साबित हुई है।

https://www.orfonline.org/expert-speak/looking-west-placing-seychelles-within-the-indian-strategic-rim-63956/?amp

The Pacific Indian- A remerging Maritime outlook

प्रशांत महासागरीय भारतउभरते हुए समुद्री रणनीति पर अवलोकन 

केवल समुद्र के पास खड़े होकर प्रतीक्षा करने और निहारने से आप उसे पार नहीं कर सकते। उसके लिए आपको कदम उठाने पड़ेंगे। भूतकाल में यह कहा जाता था कि जिसने समुद्र पर क़ब्ज़ा कर लिया उसने आसपास के देशों पर क़ब्ज़ा कर लिया। यह कहावत आज भी सही है। चाहे आप भले ही सीधे सीधे क़ब्ज़ा नहीं कर सकते लेकिन इस रास्ते से आप बहुत सारे देशों पर अपना प्रभुत्व बनाए रख सकते है। भारत को ज़रूरत है हिंद महासागर और उसके आसपास के समुंदर में अपनी ताक़त बढ़ाने की। यह ताक़त केवल समुद्री नेवी से ही नहीं बल्कि देशों के बीच में सम्बंध से भी बढ़ाया जा सकता है। कमजोर देशों की आर्थिक मदद और समय समय पर उनके इन्फ़्रस्ट्रक्चर और सिक्यरिटी मदद के द्वारा भी। कई बार इन देशों को दी गई मानवीय सहायता भी प्रभुत्व बढ़ाने में कामयाब रहती है। IONS- Indian Ocean Naval Syposium, जो कि 35 देशों का संगठन है यहा पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। Indian Ocean Rim Association (IORA)  का विकाश भारत के पक्ष में है।यह संगठन जितना ही मज़बूत होगा भारत का प्रभुत्व उतना ही बढ़ेगा। अगर आपको भारत की विदेश नीति में रुचि है तो आप ORF.ORG पर और ज़्यादा पढ़ सकते है।

The India Way लगभग 200 पन्नो की किताब है, यहा पर सिर्फ़ उसका कुछ पैराग्राफ़ ( Books Short) में संक्षेप दिया गया है। जो की इस किताब के साथ न्याय नहीं करता। इस किताब The India Way में बहुत सारी बातें है जिससे हम और आप अभी तक अनभिज्ञ रहे है। अगर भारत की विदेश नीति में आपकी रूचि है तो यह किताब आपके लिए recommeded है। इस website पर और सारे किताबों ( books short) के बारे में जानने और पढ़ने के लिए यहा क्लिक कर सकते है।

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