असुर – एक हारे हुए योद्धा की कहानी (Asura- Novel असुर किताब)

Asur book short

आप अच्छी तरह से वाक़िफ़ होंगे कि इतिहास हमेशा से विजेता द्वारा लिखा जाता है। इस इतिहास में विजेता हीरो होता है। और हारने वाला खलनायक। इस इतिहास की कहानी में विजयी पक्ष को इतना महिमा मंडित किया जाता है कि वो भगवान सरीखा लगने लगता है। उनके गुणो और अवगुनो को साइड रखते हुए। हारने वाला पक्ष कितना ही सही हो, परंतु उनके अवगुनो को इस तरह से उभार उभार कर दिखाया जाता है मानो उनसे बड़ा कोई दुष्ट राक्षस पैदा ही नहीं हुआ हो। इसी के आसपास घूमती यह किताब है, असुर।  आइए पढ़ते है असुर किताब (Asura -Novel) के बारे में।

किसके बारे में है यह असुर उपन्यास (asura novel)

यह उपन्यास असुर किताब (asura-novel) कुछ इसी तरह के भावनाओं के ख़िलाफ़ लेखक की एक कोशिश है। एक तरह से आप इसे anti रामायण भी मान सकते है। चुकी रामायण उस युद्ध के विजेता श्री राम के परिप्रेक्ष्य से लिखी गई है। इस पुस्तक असुर को लेखक ने रावण के परिप्रेक्ष्य से लिखने की कोशिश की है। रावण इस पुस्तक का मुख्य किरदार है। इसमें किसी के पास भी कोई दैविय शक्ति हो ऐसा वर्णन नहीं है। ना ही राम ना ही रावण के पास कोई चमत्कारी शक्ति है। सभी किरदारों को मानवीय (humanised) रूप से प्रदर्शित करने के कोशिश की गई है। मानवीय करण के मामले में इसकी तुलना आप अमिश त्रिपाठी द्वारा लिखे गए शिवा उपन्यास से भी कर सकते है।जहाँ शिव को एक मानव के रूप में वर्णित किया गया है।

लेखक

इस असुर किताब के लेखक है आनंद निलकंठन। इन्होंने और भी अन्य किताबें जैसे Rise of Kali, Vanara- Legend of Bali, Sugreev and Tara तथा Ajaya- Roll of Dice नामक किताबें लिखी है। ये केरल के रहने वाले है तथा इंडीयन मिथॉलजी से काफ़ी प्रेरित है। इस किताब असुर का प्रथम प्रकाशन 2012 में हुआ था।

Anand Nilkanthan- author of this book असुर किताब

असुर किताब उपन्यास के मुख्य पात्र 

इस उपन्यास के लगभग सारे पात्र वही है, जो रामायण में है। लेकिन इस पुस्तक में असुरों के तरफ़ के किरदारों  तथा उनके क्रिया कलापो की चर्चा विस्तृत ढंग से की गई है। चुकी आप जानते है यह असुरों के परिप्रेक्ष्य से लिखी गई है, परंतु उनको इनमे महिमा मंडित नहीं किया गया है। बल्कि उनके बुरे और अच्छे चरित्र को बहुत ही ढंग से प्रस्तुत किया गया है। 

इसके मुख्य पात्र है रावण और भद्र। रावण के बारे में तो सबको मालूम ही है। रावण के अंदर दस मानवीय गुण भरे है,जिनकी अधिकता उन्हें अवगुण में परिवर्तित कर देते है।यह मानवीय गुण सबमें पाए जाते है। किसी में अधिक तो किसी में कम।भद्रा इसमें रावण के एक सैनिक, एक जासूस और परित्यक्त कर्मचारी की भूमिका निभाता है। यह समय समय पर अपना सब कुछ दाव पर लगा कर रावण की मदद हेतु आता है। परंतु काम होने के पश्चात उसे बार बार दुत्कार ही मिलता है।

कहानी इस असुर किताब की

 इस उपन्यास की कहानी रावण के बचपन से शुरू होती है। अपने एक छोटे से गाव में अपनी माँ, बहन और भाई के साथ रहता है। उनके ऋषि/ब्राह्मण पिता उनके साथ नहीं रहते है। इन का बचपन अत्यंत ग़रीबी में गुजर रहा होता है। इनके पिता ने अपनी सारी सम्पत्ति रावण के सौतेले भाई कुबेर को  दे रखी है। जो लंका का शासक भी है। जब कभी रावण की माँ अपने परिवार के साथ कुछ मदद माँगने जाती है। उसे दुत्कार कर कुबेर के लंका दरबार से भगा दिया जाता है।

इस काल खंड में भारत वर्ष कई हिस्सों में बटा हुआ है। कुछ क्षेत्र में बानर वंश का राज है। कही पर सहस्त्र बाहु का राज। उत्तर भारत में जिनका राज है, वो अपने आप को विष्णु और इंद्र के वंशज मानते है। इन क्षेत्रों पर पहले असुरों का राज्य हुआ करता था।जिसे इंद्र और विष्णु के वंशजो ने कुटीलता से हराकर छीन लिया था। इसका मुख्य कारण असुरों का अपर वैभव और उनमें आपसी में फूट का भी था। वैभव आने से राक्षस अपनी सुरक्षा के प्रति अकर्मण्य हो गये थे।

देव और विष्णु के वंशज इन राज्यों पर धीरे धीरे क़ब्ज़ा करते गए। अपने साथ अपने समाज की बुराइयाँ जैसे की ऊँच नीच और  जाति व्यवस्था को भी लेकर आए। जहाँ पहले सब समान थे। अब वही समाज जातियों में बट गया था। जिनमे सबसे ऊपर क्षत्रिय और ब्राह्मण थे। सबसे नीचे व्यवसाय और खेती करने वाले। असुरों के बाक़ी बचे छोटे छोटे राज्यों पर देव राज्यों द्वारा हमला करके वहा की असुर जनता का बेरहमी से कत्ले-आम किया जाता था। धीरे धीरे सारे असुर भटकते भटकते दक्षिण की तरफ़ आ गये।

Another book by writer ओफ़ Asura

दक्षिण में यहा पर असुरों ने राजा बलि के नेतृत्व में एक महान साम्राज्य का निर्माण किया। इस राज्य में भी धीरे धीरे देवों के दूत ब्राह्मण अपना विचार फैलाना प्रारम्भ कर दिया। कुछ समय बाद देवों और ब्रह्मणो ने कुटीलता से वह राज्य भी छीन लिया।

अब आते है कथा नायक रावण के ऊपर। जैसा कि ऊपर बता चुके है कि रावण के बचपन के दिन कैसे मुश्किलों से गुज़र रहे थे। धीरे धीरे रावण के मन के अंदर देव वंशो के ख़िलाफ़ प्रतिशोध की  दबी हुई अंगार ज्वाला बनने लगी थी। रावण के अंदर जो मानवीय 10 गुण या अवगुण थे। सारे के सारे दस चरम स्तर पर थे। जैसे प्रेम, नफ़रत, ईर्ष्या, प्रतिद्वंद इत्यादि। इनके कारण कुछ लोग उसे दसानन भी कहने लगे।

रावण अपने विचारो से मिलते जुलते लोगों की एक छोटी से मंडली बनता है और प्रशिक्षण के लिए निकल पड़ता है। जंगलो में भटकते भटकते उसकी मुलाक़ात राजा बलि के गुरु और उनके शिष्यों से होती है। जो उसे प्रशासन, युद्ध इत्यादि की नीति में निपुण बनाते है। यहा पर उससे और लोग जुड़ने लगे। एक सेना तैयार हुई। और धीरे धीरे रावण ने दक्षिण में बहुत से राज्यों को जीत लिया। इन सब विजयो में उसका सैनिक भद्र बहुत मदद करता है। भद्र एक किसान था, जिसके परिवार को देवों ने तहस नहस कर दिया था आक्रमण करके। सैनिक होते हुए भी बहुत कुटिल था भद्र। जब भी कोई संकट की घड़ी में उपाय नहीं बनते निकलता तो भद्र कोई ना कोई कुटिलता या जासूसी के दम पर रावण को उपाय सुझाता। और उस उपाय पर काम करके रावण की मदद भी करता। किंतु रावण ने उसे कभी सम्मान नहीं दिया। हमेशा उसे दुत्कारता ही रहता।

उस समय बानर प्रदेश और सहस्त्रबाहु के प्रदेश को छोड़ कर पूरे उत्तर भारत पर अपने आप को देवों के वंशज कहलाने वाले लोगों का राज्य था। ये दोनो राज्य अपने आप में काफ़ी ताकतवर थे। बानर प्रदेश का राजा था बालि।बालि ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज्य हड़पने के अपराध में देश निकाला दे दिया था। यहा पर रावण और बालि की अच्छी मित्रता हो जाती है।

अब रावण हमला करता है लंका पर अपने सौतेल भाई कुबेर के ख़िलाफ़। जिसे बड़ी कठिनाई से जीता जाता है, वो भी तब जब भद्र आख़िरी मौक़े पर लंका के अंदर सारे सैनिकों को ज़हर देकर बेहोश कर देता है। रावण अब राजा बनता है। और हमेशा की तरह भद्र को फिर से दुत्कार दिया जाता है।

कहानी आगे बढ़ती है। रावण की शादी होती है मंदोदरी से। उनको पुत्री की प्राप्ति होती है। जो रावण को बहुत ही प्यारी थी। लेकिन उसके बारे में भविष्यवाणी की गई कि वो पुत्री रावण और लंका के लिए हमेशा संकट लेकर आएगी। कई लोगों ने सलाह दिया कि उसे मार दिया जाय। परंतु रावण उस बच्ची से बहुत प्यार करता था। उसकी अनुपस्थिति में उसको कोई मार ना दे। इसलिए उस बच्ची को हमेशा साथ में रखता था।यहा तक कि युद्ध करने जाता था तब भी। 

इसी तरह रावण जब एक बार उत्तर भारत में अपने युद्ध अभियान पर निकला हुआ था तब उसके मंत्रियो ने बच्ची को चुरा कर भद्र को दे दिया।इस आदेश के साथ की कही दूर ले जाकर उसकी हत्या कर दी जाय।भद्र उसे मारने के लिए ले तो गया पर उसे दया आ गयी और बच्ची को किसी के आने की आहट सुनकर उनके रास्ते में रख कर चला गया।

जिनके आने की आहत थी वह  कोई और नहीं था बल्कि मिथिला के राजा जनक थे।जिनको वह बच्ची रास्ते में मिली और उन्होंने उसे अपनी बेटी बना लिया और सीता नाम दिया।

रावण चाहता तो उसी समय मिथिला पर आक्रमण करके अपनी बच्ची को ले आता। लेकिन जब उसने देखा कि राजा जनक और मिथिला के लोग उसे कितना प्यार करते है। तो वह उस बच्ची सीता को जनक के पास छोड़ कर लंका वापस आ गया। उसे यह भी डर था कि अगर वह उस बच्ची को लंका लाता है तो उसके शुभचिंतक उसे फिर से मार सकते है।

कहानी ऐसे ही आगे बढ़ती रहती है। उस समय के लंका और पूरे भारत के समाज और रीति रिवाजों के ऊपर भी लेखक ने प्रकाश डालने की कोशिश की है। जिस असुर समाज की स्थापना रावण ने की थी अब उसमें भी धीरे धीरे जातिवाद और ऊँच नीच की भावना घुसने लगी थी। रावण का छोटा भाई विभीषण इस ब्राह्मण वाद  जातिवाद का समर्थक था। विष्णु को आदर्श मानता था। और लंका में ब्राह्मनो और असुरों के दुश्मनो को आश्रय भी देता था। कुम्भकर्ण एक बलवान योद्धा होते हुए भी मादक पदार्थों के सेवन में लिप्त रहता था। और उसके असर में दिन भर सोया रहता था।

इसी बीच रावण को पता चलता है कि उसकी प्यारी पुत्री अपने पति का वचन पालन करने के लिए जंगलो में भटक रही है। तो उसका मन जल उठा।।  बिना किसी को बताए वो मारीच के सहयोग से सीता का हरण करके लंका ले आया। ताकि समझा बुझा कर उसे अपने पास रखे। सारा राजसी सुख सीता को मिले। परंतु सीता को रावण की लंका नहीं अपने पति का साथ प्यारा था।

और उसके बाद जो रामायण की लड़ाई होती है, उसके बारे में तो आप सब भली भाँति परिचित है। 

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