आषाढ़ का एक दिन -नाटक का सारांश

आषाढ़ का एक दिन नाटक का सारांश

आषाढ़ का एक दिन मोहन राकेश जी द्वारा लिखित एक बहुत ही प्रसिद्ध हिंदी नाटक है। इस नाटक का मंचन भारत सहित विदेशों में भी अंग्रेज़ी भाषा में हुआ है। राकेश मोहन जी का जन्म 1925 में हुआ था। हिंदी साहित्य को अपनी बहुत सारी रचनाओं से सजाने के बाद उनका निधन 1972 में हो गया। आइए पढ़ते है आषाढ़ के एक दिन नाटक का सारांश।

आषाढ़ का एक दिन कविराज कालिदास और मल्लिका की प्रेम कहानी पर रचित नाट्य है। इसमें आषाढ़ का मतलब समझिए।  आषाढ़ , एक हिंदी कैलेंडर का महीना है जो सावन से पहले पड़ता है। इस महीने में उत्तर भारत में बारिश के मौसम की शुरुआत होती है। नाटक का आरम्भ इसी आषाढ़ के एक दिन से शुरू होती है। जब खूब मूसलाधार बारिश हो रही है और नायिका मल्लिका भीगते हुए घर में प्रवेश करती है। इसमें मुझे इसकी नायिका मल्लिका की बातें और निश्वार्थ प्रेम की भावनायें इतनी निर्दोष लगी कि उसकी कहानी को पढ़ते पढ़ते बरबस आँखो से आंसू कई बार छलक पड़े। यह कहानी लगभग 4th से 5th century के बीच की पृष्ठभूमि में रचा हुआ है, जब उज्जैन के राजा चंद्रगुप्त II थे। 

इस लेख में मल्लिका और कालिदास की  उन भावनाओं को मेरे लिए  शब्दों में लिखना बहुत ही मुश्किल है। फिर भी आप पाठकों के लिए  मैं इस नाट्य को कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मल्लिका और कालिदास उज्जैन राज्य के छोटे से गाँव में रहते थे। कालिदास अपने मामा यानी की मातुल के घर रहते थे। कालिदास की अपने मातुल से नहीं बनती थी। और मातुल कालिदास को रह रह कर टोका और ताना मारा किया करते थे।कालिदास शुरू से रचनाकार प्रवर्ती के थे। इसी गाव में रहते हुए उन्होंने ऋतु संहार नामक काव्य की रचना कर डाली। मल्लिका अपनी माँ के साथ उसी गाव में रहती थी। मल्लिका के पिता का देहांत कुछ साल पहले एक महामारी में हो गया था। दोनो के बीच बहुत  प्रेम था। परंतु कालिदास विवाह के बंधन में नहीं बधना चाहते थे। और मल्लिका भी निस्वार्थ प्रेम के चलते कालिदास से कभी भी किसी बंधन में बंधा देख नहीं सकती। मल्लिका की माँ अम्बिका बार बार मल्लिका को समझाने की कोशिश करती लेकिन मल्लिका के आगे उसकी एक ना चलती। कालिदास का एक मित्र था विलोम। जो कालिदास के बिलकुल विलोम था। दोनो ने साथ में पढ़ाई की, छंद रचना सीखी।लेकिन विलोम उतना आगे ना बढ़ सका जितना कालिदास। असफल कालिदास विलोम था और सफल विलोम कालिदास।विलोम भी मन ही मन मल्लिका को पसंद करता था। लेकिन मल्लिका उसे हमेशा दुतकारती रहती थी। 

उसी गाँव में रहते हुए कालिदास ने ऋतु संहार की रचना की। कुछ समय के बाद ही कालिदास की रचना ऋतु संहार इतनी प्रसिद्ध हो गई उसको पढ़ने के बाद  उज्जैन के राजा भी कालिदास और उनके काव्य के क़ायल बन गए।कालिदास को सम्मानित करने हेतु उज्जैन के राजा द्वारा राजदरबार से बुलावा आया। राजदरबार से आचार्य, सैनिक दो रथ और 5 घोड़े आए थे। गाँव वालों के बीच में पूरे उत्सव सा माहौल बन गया। परंतु कालिदास को इन सब बंधनो में नहीं पड़ना था। वो तो बस गाँव के पेड़, मैदान, पशु, पक्षी और पहाड़ों के बीच में रहना चाहते थे। और साथ ही मल्लिका का प्रेम भी।

गाव के सारे लोग तथा मातुल के समझाने पर भी वो ना माने। परंतु मल्लिका प्यार पूर्वक आग्रह को कालिदास ठुकरा ना पाए। मल्लिका ने उनसे कहा की आप को मेरी ख़ातिर जाना पड़ेगा। मेरा स्नेह और गाव प्रदेश की प्रकृति हमेशा आप के दिल के क़रीब रहेंगे। उसके समझाने और मनाने के बाद वो उज्जैन की राजधानी जाने को तैयार हो गए। विलोम और उसकी माँ मल्लिका से चाहते थे कि कालिदास के उज्जैन जाने से पहले उन दोनो की शादी हो जाए। लेकिन मल्लिका ने साफ़ तौर पर मना कर दिया यह कहते हुए कि उसका और कालिदास का प्रेम भावनाओं से जुड़ा हुआ प्रेम है। वो कालिदास को किसी बंधन में नहीं बांधना चाहती।

कालिदास उज्जैन चले गए। वह पर रहकर उन्होंने और कई सारी रचनायें की। राज दरबार में उनको राजकवि का पद दे दिया गया। बहुत सारी राजनीतिक समस्याओं में उनकी सलाह ली जाती थी। ऐसे करते करते कुछ साल और बीत गए। कालिदास कभी लौट कर अपने गाँव या मल्लिका के पास नहीं आए। ना ही उन्होंने उसकी कोई खबर ली। मल्लिका के हृदय में उनके लिए अभी भी वही निर्मल प्रेम था। वो पैसे जुटा जुटा कर राजधानी जाने वाले व्यापारियों से अनुरोध करके उनकी रची हुए ग्रंथो की प्रतियाँ ख़रीदती। उनको अपने हृदय से लगा कर पड़ती। 

उधर कालिदास का विवाह गुप्त वंश की एक राजकुमारी से हो गया। राजकुमारी अपने आप में बहुत ज्ञाता और विदुषी थी। कुछ वर्षों बाद कालिदास को कश्मीर राज्य का राजा बना कर भेजा जा रहा था। और जब उनका क़ाफ़िला राजधानी से काश्मीर की तरफ़ जा रहा था। तो रास्ते में राजकुमारी के कहने पर वो ज़बरदस्ती अपने गाव में एक दिन के लिए रुकना मंज़ूर कर लिए। दर असल उनकी पत्नी उस गाव की प्रकृति, पशु, पहाड़ और सबसे बड़ी मल्लिका से मिलना चाहती थी। जिसकी बात कालिदास हमेशा करते रहते थे। मल्लिका को लगा की कालिदास इतने वर्षों बाद गाँव आए है तो उससे मिलने ज़रूर आएँगे। परंतु कालिदास इस बार भी मल्लिका से मिलने नहीं आए। राजकुमारी मल्लिका से मिली और बोली की कालिदास हमेशा तुम्हारी चर्चा करते रहते है। तुम उनकी प्रेरणा हो। इसलिए मैं तुमसे मिलने आई। उन्होंने मल्लिका को अपने साथ कश्मीर चलने को कहा लेकिन वो नहीं मानी। राजकुमारी ने उसे प्रस्ताव दिया कि वो उनके किसी सेवक से शादी कर ले और अपने माँ सहित काश्मीर चले। परंतु मल्लिका राज़ी नहीं हुई। कालिदास और उनका क़ाफ़िला अगले सुबह गाव से रवाना हो गया।विलोम मल्लिका को ताना मार कर चल दिया कि देख लिया अपने प्रेम का नतीजा, कालिदास तुम्हें अपना नौकर बनाने के लिए अपनी पत्नी को भेजा था।

कहानी कुछ साल और आगे बढ़ती है।मल्लिका की माँ मार चुकी है। मातुल का गाव में बढ़िया सा मकान बन गया है। उनका जान मान दूर दूर के गाँवों में फैल चुका है।मल्लिका अभी भी अपने पहले से भी पुराने हो चुके घर में पड़ी है। घर के एक कोने में ऊँची तरफ कालिदास के रचे हुए सारे ग्रंथ पड़े है। और एक तरफ़ ख़ाली पन्नो का ग्रंथ जिसे मल्लिका ने बड़े जतन से बनाया था, जब कालिदास पहली बार उज्जैन गए थे। इस भाव से बनाया था कि जब कालिदास लौट कर आएँगे तो वो उस ग्रंथ उन्हें भेंट में देगी। इस कोरे ग्रंथ पर कालिदास अपनी सर्वश्रेस्ठ रचना को रूप देंगे। अब इस कोरे ग्रंथ में कालिदास की रचना की जगह मल्लिका के आंसूयों ने ले ली थी। 

कुछ साल और बाद कश्मीर में विद्रोह फैल चुका है। खबर आई है कि कालिदास राज पाठ छोड़ कर सन्यास ले कर काशी निकल गए है। मल्लिका को विश्वास नहीं हुआ। वो सोच के दुखी हो रही थी।  वो पछताने लगी की उसने क्यू कालिदास को मनाया था उज्जैन जाने के लिए। ना कालिदास उज्जैन जाते, ना सन्यास लेते। यही पर गाव में रहते और मल्लिका के साथ उनका वक्त अच्छे से कटता।

आज भी उस दिन की तरह खूब तेज बारिश हो रही थी। आषाढ़ का ही दिन था। मल्लिका यू ही मैले पुराने कपड़ों में पड़ी हुई कालिदास के रचित  ग्रंथो को  देखती हुई। सोच में डूबी थी। तभी अचानक दरवाज़े पर दस्तक होती है। दरवाज़ा खोलने पर सामने धूल, कीचड़, पानी और फटे कपड़े में कालिदास सामने खड़े मिले। दोनो की आँख से आंसू निकल पड़े। दोनो के बीच भावात्मक द्वन्द प्रारम्भ हो गया। कालिदास बोले कि क्यू वह इतने सालो तक मल्लिका से नहीं मिले। उससे दूर रह कर भी उनकी सारी रचनाओं की नायिकाएँ मल्लिका  से ही प्रेरित थी।फिर उनकी नज़र मल्लिका के घर में रखे अपने ग्रंथो और एक ख़ाली कोरी किताब पर जाती है। उनकी नज़र घूमते घूमते घर में रखे पालने पर जाती है। जहाँ एक बच्चा सोते हुए रो रहा था।

मल्लिका का विवाह विलोम से हो चुका था। उनका एक पुत्र भी हो गया। मल्लिका ने काफ़ी साल का इंतज़ार काट लिया था। कालिदास ने  आते आते बहुत देर कर दी। उन्हें अपने अंतिम मल्लिका नामक पड़ाव से वापिस जाना पड़ा। नाटक यही समाप्त होता है।  जो आषाढ़ के एक दिन से शुरू हुआ और आषाढ़ के एक दिन पर ही ख़त्म होता है।

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3 thoughts on “आषाढ़ का एक दिन -नाटक का सारांश”

    1. मुझे पढ़ के ऐसा लगा। हो सकता है। ना हुआ हो। सिर्फ वो दोनों साथ मे ही रहते हो। पर वो छोटी बच्ची किसकी थी मल्लिका के गोद मे।

    2. पर मुझे लगा वो छोटी बच्ची जो मल्लिका के पास थी उसकी वजह से। हो सकता है उनकी शादी ना हुई हो।

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