yellagiri -motor cycle ride to support local people येल्लागिरी-मोटर साइकल यात्रा स्थानीय लोगों में आशा जगाने के लिए

A ride to Yellagiri

आज दिन शुक्रवार है और  रात के 11 बज रहे है, और कल सुबह 5.30 बजे उठ के निकलना है अपनी मोटर साइकल यात्रा पर। पैकिंग और तैयारी पूरी हो चुकी है।मेरे सामने सबसे बड़ा टास्क है सोना और समय पर जागना।कुछ नया करने जाओ तो नींद ही दोखा दे जाती है।वैसे येल्लागिरी तक की यह यात्रा लगभग 460 km की होने वाली है आना और जाना मिलाकर। इस यात्रा को लेकर मन में नर्वसनेस भरा हुआ है, क्यूँकि पिछली मोटर साइकल यात्रा किए हुए एक साल से ऊपर हो चुके है। उतना कॉन्फ़िडेन्स भी नहीं आ रहा। कई बार मन तो यही कर रहा था की मना कर दूँ कुछ बहाना बना के। परंतु अगले पल यही ख़याल आया की अपनी जिंदगी में तो हम यही काम करते है। नई नई चीजों से घबराना, और उनपर कोशिश ना करना फेल होने के डर से। और अपने आप को ज़िंदगी के आरामदायक  लिहाफे में क़ैद करके रख लेते है। परंतु ज़िंदगी में  यही नई नई चीजें तो होती है जो नए नए रंग भरती है, वरना रंग हीन सफ़ेद ज़िंदगी और मौत के सन्नाटे में क्या अंतर रह जाएगा। 

यह यात्रा येल्लागिरी नामक जगह के लिए होगी। जो चेन्नई से लगभग 225 KM दूर एक छोटा सा हिल स्टेशन है। येल्लागिरी का मौसम और पहाड़ी की वजह से यह वीकेंड Gate away के लिए चेन्नई के लोगों की पसंदीदा जगहों में से एक है। पूरा आना और जाना और घूमना  लेकर 500 KM की दूरी होगी। यात्रा के दौरान बीच बीच में कई जगह ब्रेक लिया जाएगा, जैसे की चाय, पानी, ब्रेक्फ़स्ट और लंच का ब्रेक। 

इस यात्रा को प्लान किया है हमारे समूह के सदस्य सैम शर्मा ने। और येल्लागिरी में हम लोगों को ठहराने और खिलाने और पिकनिक का ज़िम्मा लिया है गोकुल ने। गोकुल हमारे ही ग्रूप का अन्य सदस्य है और उसका येल्लागिरी में अपना होटेल है। जहां पर कई सारे स्थानीय लोग काम करते है। सैम ने इस यात्रा का नाम दिया है Post Covid Ride to assure and support the Local business. 

सैम के मुताबिक़ इस covid के टाइम में येल्लागिरी के लोगों के पास कोई रोज़गार नहीं बचा रहा, क्यूँकि वहाँ की पूरी अर्थ्व्यस्था पर्यटन पर केंद्रित है। lockdown के दौरान लोगों के ना आने के कारण ना होटेल चलते थे,ना छोटे छोटे दुकानदारो के सामान। होटेल में काम करने वालों को काम से हटना पड़ा। छोटे छोटे व्यापारी जैसे, खिलौने बेचने वाले, फल बेचने वाले, पर्यटन स्थल के आसपास काम  करने वालों के पास कमाई का कोई साधन नहीं बचा। Post Covid की इस यात्रा से सैम और हम सब लोगों को आशा है की वहाँ के छोटे छोटे व्यापारियों और काम करने वालों में आशा जागेगी। हम कुछ ना कुछ ख़रीदारी करके उनका हौसला बढ़ा सकते है।

शनिवार को सुबह 5.30 बजे उठकर फटाफट तैयार होकर मेरी यात्रा सुबह 6 बजे शुरू हो गई। 6.30 बजे चेन्नई – बंगलोर हाइवे पर स्थित मोटेल हाइवे नामक रेस्ट्रॉंट पर पहुँचा, जो की बाक़ी सभी 17 लोगों के लिए मीटिंग प्वाइंट था। 17 लोग 17 बाइकों पर। इस ग्रूप में दो ऐसी बाइक भी शामिल थी, ट्राइअम्फ़ ब्रांड की जिनका ओन रोड दाम लगभग 15 लाख के आसपास है। 160-180 km की रफ़्तार पर आराम से चलने वाली बाइक्स। बाक़ी बाइक्स में हिमालयन, इंटर्सेप्टर,क्लासिक 500 और यामाहा fz शामिल थी। 

6.30 बजे से धीरे धीरे एक एक करके सदस्य आने लगे। इस ग्रूप में सैम को छोड़कर बाक़ी लोगों से मैं पहली बार मिल रहा था। मोटर साइकल यात्रा का यह एक पहलू है कि आप नए नए लोगों से मिलते है। हमारी जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लोग है उनसे से हट कर अलग अलग लोगों से मिलने का मौक़ा। सब सदस्यों का अपना अपना क्षेत्र, अनुभव और कहानी। इन नए लोगों से मिलकर लगता है कि बहुत सारी चीजें नयी है।हमारे क्षेत्र से बाहर भी बहुत सारी रोमांचक और हटके  चीजें है। मोटल हाइवे पर 17 लोगों से मुलाक़ात, हाई हेलो, जान पहचान और चाय कॉफ़ी के बाद हमारी यात्रा शुरू हुई लगभग 07 बजे। चलते समय यह निर्णय लिया गया कि हमारा अगला ब्रेक नाश्ते के लिए होगा, जो कि लगभग 80 KM दूर था। 

यात्रा शुरू करने से पहले सबको यह बता दिया गया कि तेज चलने वाली बाइक जैसे की ट्राइअम्फ़ और इंटर्सेप्टर समूह को लीड करेंगी यानी की सारी बाइक्स उनके पीछे रहेंगी और उन्हें कोई क्रॉस नहीं करेगा। मैंने और सैम ने टेल यानी की ग्रूप के पीछे रहने की ज़िम्मेदारी सम्भाली। टेल का काम होता है समूह को sweep करने का। और ये निश्चित करने का कि कोई सदस्य पीछे ना छूटे। 

मोटर साइकल ग्रूप में आगे चलने वाले  सदस्य को अपने मिरर में हमेशा अपनी पीछे वाली बाइक को देखते रहना पड़ता है, और जब वो काफ़ी समय तक बैक मिरर में ना देखे तो आगे वाले सदस्य को गति धीमी करके तब तक इंतज़ार करना होता है जब तक कि पीछे वाला सदस्य उसके बैक मिरर में दिखने ना लगे। इस तरह से सारी बाइक्स एक दूसरे की नज़र में रहती है। यानी कि सबको साथ में लेकर चलना होता है। इसमें अगर आपके आगे वाला सदस्य साइड में रुक गया है, तो पीछे से  आपको भी रुकना होगा, जब तक कि वो इशारा ना करे कि सब ठीक है आगे बढ़ो। इसमें  आगे वाला राइडर तरह तरह के सिग्नल देता है, जैसे की गति धीमी करो, तेज चलो, आगे क्रॉसिंग है, रोड पर पशु है, गड्डा है या पोलिस खड़ी है। यह सिग्नल एक राइडर को अपने पीछे वाले को पास करना होता है। और संदेश समूह के आख़िरी सदस्य तक पहुँच जाता है। टीम भावना, और brotherhood को आप इस तरह के समूह यात्रा में सजीव देख सकते है।

रुकते रुकाते हमारा काफीला लगभग 11.30 बजे येल्लागिरी पहाड़ी के नीचे पहुँचा। यहा से येल्लागिरी की पहाड़ी अद्भुत नज़र आ रही थी। जंगलो की हरियाली से घिरी हुई। एक पहाड़ी के बाद दूसरी पहाड़ी। और उस पहाड़ के अंदर प्रवेश करता सर्पिला रास्ता। बहुत ही प्रशन्नता से भर देने वाला दृश्य। मौसम भी काफ़ी कम तापमान पर हो गया था। चेन्नई की उमस और गर्मी का अहसास येल्लागिरी के मौसम को कुछ अधिक ही रमणीक बना रहा था। इस जगह पर पोलिस द्वारा  येल्लागिरी में जाने के लिए e-pass चेक किया जा रहा था। ये e-pass हम लोगों ने लगभग 2 दिन पहले ही प्राप्त कर लिया था। बिना इसके किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। तमिलनाडु e-pass के लिए यहा क्लिक करके अप्लाई कर सकते है।

येल्लागिरी में e-pass चेकिंग के बाद हम वहाँ पर एक छोटे से मंदिर के पास रूके। और बाक़ी बचे हुए सदस्यों के आने का इंतज़ार करने लगे। आसपास छोटे छोटे और मोटे बंदर टहल रहे थे। जो कोई भी खाने का पैकेट खोलो तो उनके ऊपर झपट्टा मारने की तैयारी करने लगते। यहाँ से येल्लागिरी के ऊपर वाले हिस्से यानी की जहां हमें जाना था, उसकी दूरी लगभग 14 KM थी। पूरे रास्ते में लगभग 14 हेयर पिन बेंड यानी की तीक्ष्ण मोड़ थे। जो की बालों में लगाने वाले पिन की तरह थे। मतलब की लगभग 360 डिग्री का मोड़।बस अंतर यही था की ये मोड़ हमें ऊपर या नीचे ले जाने में मदद करते थे।

बाक़ी सदस्यों के आने के बाद बाइक से पहाड़ी की चढ़ाई की यात्रा चालू हुई। दो लेन की सड़क और  चारों तरफ़ जंगल की हरियाली। सामने से आते हुए वाहनो की वजह से ओवर टेक करना मुश्किल हो रहा था। और लगभग हर 100 या 200 मीटर के बाद मोड़। मोड़ पर गति एक दम धीमे और रफ़्तार तब तक नहीं बढ़ा सकते जबतक की सामने रास्ता ख़ाली ना दिखे। इन रास्तों पर बहुत सारे बंदर भी अपने अपने परिवारों के साथ टहल रहे थे। और बग़ल में ऐसे खड़े थे जैसे हमारे स्वागत के लिए ही वो आए हो। ये बंदर कभी कभी सामने सड़क पर आ जा रहे थे, जिससे  संभल कर बाइक चलानी पड़ रही थी। 

गीयर नीचे करके तीखे मोड़ो पर मोटर साइकल को और धीमे करना पड़ता था। जब कोई बड़ा वाहन जैसे की बस या ट्रक सामने से आते थे इन मोड़ो पर तो हमें पहले ही रुकना पड़ता था।क्युकी ये वहाँ घूमने के लिए पूरी सड़क का इस्तेमाल करते थे। इन तीक्ष्ण मोड़ यानी की हेयर पिन बेंड्स पर दो या तीन पोलिस की टीम हमेशा तैनात रहती थी ताकि सुरक्षा और गति नियंत्रण को नियमित किया जा सके।

इन रास्तों पर चलते चलते हम कई बार जगह देख कर रुक जाते थे। वहाँ से नीचे के शहरों नजरा बहुत ही सुंदर नज़र आ रहा था। कुछ समय रुकते, नजारा देखते और फिर आगे चल पड़ते।

लगभग 12.30 बजे हमारी टीम अपने गंतव्य होटेल में पहुँची। वहा पर मुझे एक बेड दिया गया एक डूप्लेक्स रूम में। डूप्लेक्स यानी की एक बड़ा कमरा में दो तल। नीचे तल पर चार बेड और ऊपर तल पर चर बेड। मेरे साथ डॉक्टर जॉर्ज  और रोहित भाई थे। होटेल में फ़्रेश और नहाने धोने के बाद अब बड़ी ज़ोरों की भूख लग आइ। होटेल के पीछे वाले अहाते में ख़ासकर हमारी टीम के लिए लंच बफ़े की व्यव्स्था थी। बिरयानी, पुलाव, आलू की सब्ज़ी, चिकन, सलाद और नाना प्रकार के व्यंजन। मेरी दोस्ती यह पर क्रिस भाई से हुई।इनकी उम्र लगभग 45-47 साल थी। बहुत ही खुश मिज़ाज व्यक्ति।क्रिस ने बताया कि या तो वो ऑफ़िस में अपनी कुर्सी पर होते है या अपनी बाइक की सीट पर। आगे उन्होंने बताया कि उनके पीठ में कुछ समस्या है और इसलिए जब तक शरीर उनका साथ दे रहा है, वो ज़्यादा से ज़्यादा राइड करना चाहते है।

येल्लागिरी टाउन में पहुचने पर मुझे ऐसा लगा कि हम लोगों के ग्रूप को देखकर वहाँ के स्थानियो के चेहरों पर हल्की हल्की मुस्कान तैरने लगी है। थोड़ा थोड़ा आशा जागने लगा कि चलो लॉक डाउन के बाद अब सैलानी आने लगे है। हमारी स्थिती में अब कुछ तो सुधार होगा। और असल में हमारी यात्रा का मक़सद भी तो यही था। Assurance Ride यानी की वहाँ के लोगों के मन में कुछ आशा जगाना। लंच करते करते 1 से 1.30 घंटे लग गए।शाम को आराम करने के बाद हम वहाँ के पतले पतले रास्तों पर घूमने निकल पड़े। ये रास्ते कम चौड़े थे पर ख़ाली थे। इन रास्तों की मदद से छोटे छोटे गाँव और बस्तियों से गुजरते हुए हम आगे पहुँचे और एक सुनसान जगह देखकर सबने अपनी अपनी बाइक रोकी। कुछ लोग photography कर रहे थे, तो कुछ प्रकृति की सुंदरता को निहार रहे थे। बाक़ी सब आपस में कुछ ना कुछ चर्चा कर रहे थे। मैंने तो तीनो काम किए। फ़ोटो लिया, आसपास जंगलो को निहारा, चिड़िया और जानवरो की आवाज़ों को सुनने की कोशिश की और बात चीत भी की टीम के सदस्यों के साथ।

घूमते घूमते हम कुछ ना कुछ ख़रीद भी रहे थे।जैसे की लकड़ी के खिलौने, फल, और अन्य सारे सामान। हमारा दूसरा मक़सद स्थानीय local economy को सहारा भी तो देना था। सब ख़रीदारी बिना मोल भाव के हो रही थी, यानी की जो भी दाम दुकान दार लगाए उसी क़ीमत पर सामान। वैसे भी कोई महँगा सामान तो बेच नहीं रहे थे वो। 

कुछ लोगों ने बताया कियहाँ के लोग आसपास की ज़मीनो के मालिक हुआ करते थे। जो धीरे धीरे अपनी ज़मीन बाहर से आए होटेल मालिकों को बेचते गए, और उन्ही होटेलो में आज वो सफ़ाई का या खाना बनाने  का काम सम्भालते है। ये अपनी ज़मीनो में अच्छी अच्छी चीजें उपजा सकते थे, परंतु बाज़ार के अभाव में उनका अच्छा दाम नहीं मिलता है। लॉक डाउन के दौरान इन लोगों के ऊपर भयंकर मार पड़ी थी।कई महीनो से वेतन नहीं मिल पा रहा था। मिलता भी कहा से ,ना पर्यटक आते ना होटेल चलते।

ख़रीदारी वैगरह करने के बाद हमारी टीम होटेल में वापस आई। शाम को बैठने की व्यवस्था हुई होटेल के लॉन में, जहां पर एक लम्बी सी टेबल और 17-18 कुर्सियाँ लगी हुई थी। होटेल की तरफ़ से अलग छोटे नाश्तों का लाइव काउंटर। वहाँ पर शाम को सात बजे से बार्बिक्यू, बोन फ़ायर, स्नैक्स और ड्रिंक्स की वयस्था थी। दो दो बार्बिक्यूज़ लगे थे, उस पर कोई चीकन सेंक रहा था तो कोई पनीर। बाक़ी होटेल के स्टाफ़ भी अलग अलग तरीक़े से खाने का आइटम लाए जा रहे थे। रात के लगभग 11 से 12 बजे तक हम सब वही बैठे रहें। बाते करते रहे। सब अपने अपने अनुभव और क्षेत्र की बातें और कहानिया बता रहा थे। बहुत ख़ुशनुमा माहौल था।लगभग 12 बजे सब अपने अपने कमरों में सोने चले गए।

सुबह 7.30 बजे आँख खुली। कमरे की खिड़की से बाहर का नज़र बहुत ही शानदार था। चारों तरफ़ ऊँचे ऊँचे पेड़। पेड़ो के आसपास बिखरे हुए बादल कुछ अलग ही छटा बिखेर रहे थे।जैसे लग रहा था, हम लोगों की रात इन पेड़ों के नीचे ही कटी हो। टीम के कुछ सदस्य सुबह सुबह सूर्योदय देखने के लिए निकल चुके थे। तो कुछ यू ही कच्ची पक्की सड़कों पर टहलने के लिए। कुछ सदस्य झील के कीनारे घूम रहे थे। सब सदस्यों के लौटने के बाद 9 बजे के आसपास नास्ता खतम हुआ। डोसा, इडली, उपमा और ओमलेट के साथ।

1 बजे के आसपास हम लोग येल्लागिरी से चेन्नई के लिए निकले। रास्ते में कई, जगह रुकते, सुस्ताते और खाते पीते हुए लगभग शाम को सात बजे मैं चेन्नई अपने घर पहुँच गया। ये दो दिन रास्ते की एकाग्रता से भरपूर और व्यस्त ज़िंदगी से दूरी के दिन थे। 

मेरी मोटर साइकल यात्रा से सम्बंधित और ब्लॉग के लिए यहाँ क्लिक करें।

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