हिम्मत ए मलखान

मलखान कहानी

साल 1923।भादो  का आख़िरी हफ़्ता चल रहा है। हल्की हल्की बारिश हो रही है। दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा है। सामने खड़े पूरे गाव से 400 लठैत। मेरे टीम में बस 20 साथी अपनी अपनी लाठियों की साथ।आज लग रहा है ज़मीन का झगड़ा हमें ज़मीन में दफ़न करा देगा। अभी रक्षाबंधन बीते हुए कुछ ही दिन हुए। जिन बहनो की रक्षा के लिए हाथ में सूत्र बाँधा  था। आज उन्ही बहनो को मेरे दुश्मन उठा कर ले जाने की धमकी दे रहे है। हम है मलखान पट्टी वाले।गाव के बाहर का मैदान, जिसके बीच से एक छोटा नाला होकर निकलता है। मैदान के पश्चिम छोर के पास पाकड का पेड़।नाले के आर पार दोनो तरफ़ खड़े हम और हमारे दुश्मन।

कुछ समय पहले तक ये दुश्मन तो नही थे मेरे। साथ साथ में बैठ के टोलियाँ बनती  थी। साथ में गुरु चेला बनके  कुश्ती और लाठी चलाने  का अभ्यास चलता था। और आज ये दिन आ गया  कि जो चेला है, वही गुरु के सामने लाठी लेकर खड़ा है। हम बीस ही  लोग थे अपने टीम में। डर  बहुत था, कि  आज का दिन आख़िरी दिन था। लेकिन मन में ये भी विश्वास था कि  हम कम से कम 10  लोगों को अपने साथ में ज़मीन के अंदर ले जाएँगे। इस लड़ाई में बच जाए तो ठीक वरना गाँव  से कम से कम 220 लोगों की जनसंख्या कम हो जाएगी।200 उनके और 20 हमारे। फिर जो होगा वो देखा जाएगा।

समय आ गया है, अब हम आमने सामने खड़े है। मात्र कुछ गज की दूरी पर। अब पीछे मुड़ के सोचने समझने का समय हाथ से निकल चुका है। सामने से विरोधी पक्ष का नेतृत्व कर रहे है नगछेद राय। गाव के सबसे बड़े लठैत और पहलवान। कुछ समय पहले तक मेरे साथी और बालक  इनसे ही  लठैती और पहलवानी के गुर सीखते थे। नगछेद भी  फुफकारते हुए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए सम्बोधित कर रहे थे। आज मलखान पट्टी वालों को उनकी मौत इस मैदान में खींच लाई है। आज सारी की सारी अकड़ इनसे निकाल दूँगा। पिटने के बाद इनके घर जाएँगे। घर ज़मीन पर क़ब्ज़ा करेंगे और इनकी बहन बेटियों को उठा ले आएँगे।

लाठी युद्ध की एक कला
सिलम्बन

कई महीनो से मुक़दमा चल रहा है। गाव से लगभग २०० किमी दूर इलाहबाद हाई कोर्ट में। कभी कभार मेरे गाव से कोई आता है, चाहे वो मेरे मुहल्ले का हो या दूसरे मुहल्ले का। इतनी दूर का सफ़र कुछ दूर पैदल तो कुछ दूर बैलगाड़ी से करना पड़ता है। आने जाने में लगभग 10 दिन लग ही जाते है। जो भी आता है मिल के सबसे ही जाता है। कोई भी आदमी आए, चाहे विपक्ष का भी, जब भी गाव से आता है, तो दाना पानी सबके लिए लाता ही है। मेरे घर में मेरे भतीजे की पत्नी और उनके तीन छोटे छोटे बेटों के अलावा कोई बचा है नही अब।

मेरा भतीजा और मैं  जेल में ही सजा काट रहे है। घर में खेती करने करने के लिए, भतीजे के ससुराल वाले आते है। कुछ दिन रुक कर खेती कराते है, और वापस चले जाते है। इस मुक़दमे के चक्कर में मेरे सारे पट्टीदारो की लगभग आधी  ज़मीन बिक चुकी है। ज़मीन बेचने की नौबत तो मेरे सर पर भी थी। पर मैंने बेचा नही, अपनी ज़मीनो को शहर के सेठ के यह गिरवी रख दिया है। भविष्य में मेहनत करके उसे भी सेठ के हाथ से निकालना होगा। 

इससे पहले 1898 तक मैं  बनारस के राजा का तहसीलदार था। रुतबा बहुत ज़्यादा था मेरा। शान और शोहरत पूरे इलाक़े में फैली हुई थी। मेरे पिता का नाम भरोसा राय था। 1897 में आए बुबोनिक  प्लेग में मेरा सारा परिवार मुझसे छिन गया। मेरी पत्नी, मेरे दोनो जवान बेटे सहदेव, महादेव और उनका पूरा परिवार। जीवन में कुछ बचा भी नही था। तहसीलदार की नौकरी छोड़ी और अपने गाव अपने बड़े भाई विशेश्वर और उनके परिवार के पास चला आया। वापस आकर देखा तो प्लेग में मेरे भाई, भाभी, और भतीजे की पत्नी भी चल बसे थे। अपने इतने बड़े परिवार में सिर्फ़ दो लोग बचे थे। मैं  नकछेदी राय और मेरा भतीजा नागेश्वर राय। देखते देखते पूरा भरा बसा परिवार आँखों के आगे से ओझल हो गया था।

और पूरे गाव में लगभग सभी परिवारों में यही हाल था। लोग दाह संस्कार के लिए जाते, वापस आते तो दो और लोग को दाह संस्कार के लिए ले जाना पड़ता। इसी तरह ताता पूरी तरह लगा हुआ था। पूरे देश में तबाही फैली हुई थी। अंग्रेज़ी सरकार ने अपने कर्मचारियों को काम पर लगाया। जिस घर में थोड़ा भी संक्रमण का डर होता, उन्हें गाव से बाहर निकाल कर दूर झोंपड़े में छोड़ दिया जाता। कोई दवा दारू की वयस्था थी नही। जो संक्रमण  से बच भी जाता वो वो गाव के बाहर रह कर भूख से मर जाता। दो से तीन साल बाद समस्या क़ाबू में आयी। 

मैंने अपने भतीजे नगेस्वर का पुनः विवाह करवाया। उसकी नई पत्नी का नाम था जमुना।और आज के तारीख़ यानी कि 1924 में हमारे परिवार में तीन नए बच्चे आ गए है। 16-17 साल के रामनाथ, 12 साल के वासुदेव और 5 साल के नरेंदर।  ५ साल के नरेंदर और मुझमें काफ़ी बनती थी। आज कई महीनो बाद वासुदेव नरेंदर को लेकर आएगा। उसे आज गोद में अपने खिलाऊँगा। 

दोपहर होते होते वासुदेव आया, उसकी गोंद में कोई २ से ३ महीने का बच्चा था। मैंने ध्यान नही दिया, मेरी आँखे तो नरेंदर को ढूँढ रही थी। पर नरेंदर दिखा नही। मैंने वासु से पूछा, नरेंदर कहा है? उसकी आँखो में आँसू आ गए। बाबा एक दो महीने पहले नरेंदर को बहुत तेज बुख़ार आया, उसका गाव के वैद्य से इलाज भी करवाया। पर दो तीन दिन में ही  वो हम लोगों का साथ छोड़ कर चला गया। मेरे आँखो के सामने अंधेरा सा छा गया। गले में रूधन  अटक से गई थी। निकल नही पा रही थी। आँसुओ के कारण गिली आँखो से सब कुछ धुंधला सा दिख रहा था। 

कुछ समय बाद मेरा ध्यान वासुदेव की गोद में बच्चे पर गया। ये कौन है ? बाबा ये आपका नया पोता, दो तीन महीने पहले पैदा हुआ। पटक दो इसको ज़मीन पर, हे  भगवान जब नया पोता देना ही  था तो नरेंदर को छीना क्यू मुझसे? कुछ समय दुःख शांत होने के बाद वासुदेव को अपने पास बुलाया, नए पोते को गोद में लिया, प्यार से सहलाते हुए बोला।  अपनी माँ से जा कर बोल देना, इसका नाम फ़ौजदार राय रहेगा। फ़ौजदार काहे बाबा? अरे बच्चा देख रहे तुम्हारे पिता और मैं  फ़ौजदारी के केस में जेल में बन्द  है। हम और हमारे पट्टीदारो के ऊपर फ़ौजदारी (criminal case)  रही है। इस लिए इसका नाम आज से फ़ौजदार रहेगा। फ़ौजदार का मतलब होता है, पुलिस अधिकारी। 

 और बताओ बेटा खेत खलिहान का क्या हाल चाल है? बाबा मैं और रामनाथ भैया, रोज़ सुबह सुबह  खुरपी  और फरसा लेकर निकल जाते है। हमारी जितनी भी ज़मीन बंजर पड़ी है। जिसमें ख़ाली कुश उगता है। उन सबको हम लोग धीरे धीरे कोड़  के निकाल रहे है। बहुत सारा खेत जो है हमने खेती लायक़ बना दिया है। आप और पिता जी जब यहाँ से वापस गाव आएँगे, तब तक कई बीघे बंजर ज़मीन को हम लोग उपजाऊ बना लेंगे। इन खेतों में हुई फ़सलो के दम पर हम अपनी  गिरवी पड़ी ज़मीन भी निकलवा लेंगे।

बाक़ी जब खेती बोने का समय होता है, तो नानी गाव असावर  से मामा और नाना आते है। खेती कराकर चले जाते है। फिर जब काटने का समय आता है, तो वो वापस आते है। फसल कटवाते है, दउरी  करवाते है। और उनको बेच कर जो भी पैसा होता है माँ के हाथ में सौंप कर चले जाते है। बाक़ी बाबा जबसे गाव की लड़ाई को वीरता से हमने जीता है। गाव में हम लोगों का सम्मान और ऊपर हो गया है। हमारी तरफ़ कोई नज़र उठा के देख नही पाता है। 

बाबा लेकिन इस युद्ध के पीछे कहानी क्या है?  मैंने बोला ठीक है, वासुदेव ध्यान से सुनो तुमको इसके पीछे की पूरी कहानी तुमको सुनाता हूँ।- 

हमारे एक पट्टी दार है मोहर। उनके परिवार में मोहर और उनके भाई के अलावा कोई नही था। दोनो की शादी भी नही हुई थी। ना ही आगे होने की कोई सम्भावना थी। पट्टी दार  होने के नाते उनकी ज़मीन भी हम सब के बराबर थी। लेकिन जैसा हर जगह होता है, कमजोर को और दबाया जाता है। वैसे ही हमारे परिवार और पट्टी दारों के परिवारों ने उनकी कुछ ज़मीन ज़बरदस्ती जोतने लगे। सबको यही लगने लगा की इनके बाद ज़मीन हमारी ही है, तो इसको अभी से क्यू ना जोता जाए।

मोहर को कैसे बर्दाश्त  हो कि  उनकी ज़मीन पर कोई और हल चलाए। लेकिन कुछ कर भी नही सकते थे, कमजोर और पुत्रविहीन जो थे। लड़ाई कर नही सकते थे। तो बार बार जाकर अपने पट्टी दारों  से अनुनय विनय करते थे। लेकिन उनकी बात से पट्टी दारों के कान पर जूँ  तक नही रेंगती थी। 

उनके पास अब एक ही रास्ता बचा था। इन पट्टी दारों से मज़बूत लोगों के पास ज़ाया जाए। और उनसे मदद माँगी जाए। गाव में इस मलखान पट्टी से ज़्यादा मज़बूत लोग थे, बाक़ी पट्टी के लोग। ये लोग थे बल्ली पट्टी, दक्खिन पट्टी से, और एक दो और पट्टियों से। ये लोग बड़े बड़े किसान थे। चौधरी लोग थे।कई बीघे खेत थे। लाठी और लठैतों से भी मज़बूत थे। इनकी संगठित धन बल और बाहु बल के तुलना में हम बहुत नीचे है। मोहर आख़िर में इनके पास मदद माँगने पहुँचे।लेकिन बात यही है, जब शैतान से मदद माँगोगे शैतान को हराने के लिए, तब शैतान को कुछ ना कुछ चढ़ावा चड़ाना ही पड़ता है। बात तय हुई की मोहर अपनी ज़मीन का कुछ हिस्सा इन पट्टीयो के बड़े बड़े चौधरियों के नाम लिखा जाएगा। कुछ ज़मीन बल्ली पट्टी के बड़े चौधरी ने, कुछ दक्षिण पट्टी के तो कुछ अन्य पट्टी के चौधर लोगों ने अपने नाम लिखवाई। इसके बाद तय हुआ कि मोहर की बाक़ी ज़मीन को उनके पट्टी दारों से मुक्त करवाई जाएगी।

इसके बाद बाक़ी पट्टी के चौधुर और बडकवा लोग हमारे दुआर पर आए। और पहले तो साधारण भाषा में हमें बोला की मोहर की ज़मीन ख़ाली कर दो। जो आप लोग ज़बरदस्ती बो रहे हो। मैंने बोला की बड़का भैया हमही  केवल इनका खेत थोड़े ना जोत  रहे है। हमारे पट्टी दार भी तो है। जाओ पहले मेरे पट्टी दारों से बोलो ज़मीन ख़ाली करने के लिए। अगर वो ख़ाली कर देंगे। तो मैं  भी ख़ाली कर दूँगा। इसके बाद हमारे पट्टी दार महावीर राय को बुलाया गया। महावीर से भी यही बात बोली गई। बात सुनते ही महावीर ग़ुस्से से तमतमा उठे। बोले तुम लोगों की हिम्मत कैसे हो गई, हमारे दरवाज़े पर आकर हमही से ज़मीन ख़ाली करने को बोल रहे हो। निकल जाओ तुरंत यहाँ  से नही तो जूते मार कर बाहर निकल दूँगा। 

चौधुर लोगों ने बोला, हम तो बात चीत करके ज़मीन ख़ाली करवाने आए। ख़ैर कोई बात नही, अब बात करने के लिए हमारी लाठी आएगी। ज़मीन अब ख़ाली होगी लाठी के दम पर। तुम लोगों की औक़ात नही है। आ जाना आमने सामने अपनी लाठियों के बट्ट  से कूट कूट कर तुम लोगों का पूरा खानदान साफ़ कर देंगे। तुम्हारी बहु बेटियों को उठा ले जाएँगे। मैंने बोला तुम लोगों की औक़ात नही है बल्ली पट्टी और दक्खिन पट्टी वालों । तुमको लगता है तुम 400  हो और हम 15-20, तो हमारा सफ़ाया कर दोगे। याद रखो नीचो मलखान पट्टी का एक एक आदमी तुम कायरों के २० २० आदमी के बराबर है। पता नही है, तो अपना इतिहास उठा के देख लो। बाक़ी पट्टी वाले फुफकारते हुए हमारे दरवाज़े और मुहल्ले से निकल गए।

इन सबके बाद लड़ाई का दिन और मैदान निश्चित किया गया। दोनो तरफ़ के लोग अपनी अपनी लाठियों में तेल लगा कर तैयार करने लगे। बल्ली पट्टी की तरफ़ से लगभग 400 लोग थे। दक्खिन पट्टी के लोग किसी भी पक्ष में शामिल नही हुए। हमारी तरफ़ मलखान पट्टी में 20 लोग। लेकिन सब एक से बढ़कर लाठी चलाने में माहिर। हम लोगों के साथ मलखान पट्टी के शुक्ला और यादव लोग भी लड़ाई में शामिल थे। इस लड़ाई में कंधा से कंधा मिलाकर खड़े थे। अब ये लड़ाई सिर्फ़ पट्टीदारो की लड़ाई नही बल्कि अपनी पट्टी की इज्जत वाली लड़ाई बन गई थी।

हम लोगों के पक्ष में 20 लोग। सामने के पक्ष में लगभग 400 लोग। इन विपक्षियों का नेतृत्व कर रहे थे श्यामरथी। श्यामरथी के लाठी से आग बरसती थी। जो भी मेरे पक्ष के लोग है, सब के सब उनके ही चेले है। गाव में एक ही  अखाड़ा और एक ही गुरु। ज़िंदगी भर जिससे लाठी की लड़ाई के सारे गुर सीखे, आज उसी से मुक़ाबला करने पर अजीब सा पीड़ा   बार बार सिहर कर जाता था। पर फिर भी लड़ाई सम्मान और घमंड की थी। मैदान में आज आर पार होना ही था।

भादो का आख़िरी हफ़्ता चल रहा है। बारिश की  सिप सिप करते हुए बूँद बूँद गिरी जा रही थी। इसी बूँदा  बादी ने पूरी ज़मीन गिली कर रखी थी। इस गिली ज़मीन में  गाय भैषो  के खुर के निशान जगह तगह नज़र आ रहे थे। निश्चय हुआ था, कि  सुबह सूर्योदय से लड़ाई शुरू होगी। और मलखान पट्टी के लोग बचे रहे तो, यह लड़ाई सूर्यास्त तक चलेगी। 

अब दोनो पक्षों के लोग आमने सामने थे। श्यामरथी के सामने हमारी तरफ़ से महावीर थे। बाक़ी लोगों ने आमने सामने खड़े थे । युद्ध के नियम के मुताबिक़ हम 20 लोग से सामना करने के लिए सामने से २० लोग थे। बाक़ी 380 प्रतिद्वंदी उनके पीछे। श्यामरथी ने महावीर से कहा, महावीर लाठी चलाओ। महावीर – पहले आप चलाइए। नगछेद – नही पहले तुम उठाओ लाठी। महावीर- आप गुरु है, लाठी पहले आप चलाईये । श्यामरथी ने अपनी लाठी दोनो हाथों से पकड़ी। यह लाठी कोई आम लाठी नही थी। लगभग 10 किलो वज़नी और 10  फ़ीट की लम्बाई। हाथ से पकड़ने वाली जगह अपेक्षाकृत पतली, और वार करने वाला छोर मोटा और वज़नी।

श्यामरथी ने एक तेज हुंकार भरी , मज़बूत कलाइयों और बाजुओं  का प्रयोग करते हुए अपनी लाठी महावीर पर चला दी।महावीर उसी गुरु के चेले थे। इससे पहले की लाठी का आख़िरी छोर उनके ऊपर गिरता, कुछ कदम पीछे हट गए। लाठी का वार ख़ाली गया। सू-ई ई ई   की आवाज़ करते हुए लाठी ज़मीन में जा धंसी। वही ज़मीन जो बारिश में भींग कर पूरी गीली हो गई थी। जैसे ही लाठी ख़ाली ज़मीन पर पड़के ज़मीन में धंसी , बग़ल में खड़े शिव मंगल कूद के लाठी के ऊपर चढ़ गए।इससे लाठी एक फूट और नीचे धँस गई। तपाक  से शिव मंगल बोले – मुँह  क्या ताक रहे हो महावीर, चलाओ अपनी लाठी, वार ना जाए ख़ाली। 

ऐसा कहना था, की महावीर की लाठी फुफकार भरते हुए निकली और सीधे जाकर श्यामरथी के कन पट्टी  (कान और आँख के बीच का हिस्सा) पड़ी। एक ही वार में मंगला नीचे गिर  कर ढेर हो गए। गरमा गरम खून निकल कर बारिश के पानी में मिल रहा था। श्यामरथी के गिरते ही सामने के पक्ष में हड़कम्प मच गया। इधर मेरे साथी, घुमा घुमा कर अपनी लाठियों का वार किए जा रहे थे। और विपक्षी पीछे हटते चले जा रहे थे। अपने सेनापति के अनुपस्थिति के कारण मनोबल उनका बहुत नीचे था। और हमारी तरफ़ मनोबल अपने चरम स्तर पर। 

ललकार के खदेड़ते हुए मैदान के आख़िरी बरगद के पेड़ तक ले गए। फिर आख़िरी छोर पर विरोधियों ने हमें पीछे धकेलना चालू किया। कुछ दूर तक हम चहेटते तो कुछ दूर तक वो। ऐसा करते करते लगभग शाम हो आई। मैदान के एक छोर पर खड़े रहकर तमाशा देखने वाले अंगद पट्टी के लोगों से रहा नही गया। उन्होंने बोला बल्ली पट्टी, दक्खिन पट्टी और बाक़ी पट्टी वालों अब पीछे हट जाओ नही तो अब हम भी मैदान में मलखान राय पट्टी की तरफ़ से उतरेंगे। मलखान राय पट्टी हमारी पट्टी का नाम था। 

आख़िर में शाम को लड़ाई जा कर रूकी। जो हमसे ज़मीन ख़ाली करवाने आए वो ख़ाली हाथ लौट गये। विपक्षी पट्टी के बहुत लोग घायल हुए,हम लोगों में सब बुरी तरह घायल हो चुके थे। विपक्ष के श्यामरथी राय मारे गए। हमारे तरफ़ के लोग भी घायल हुए थे। रात होते होते सब वापस अपने घर लौट आए। सुबह होते ही हमारे दरवाज़े पर चार घोड़ों पर सवार अंग्रेज और हिंदुस्तानी सिपाही हाज़िर हुए। श्यामरथी राय के युद्ध में हत्या के चलते, मुझे और मेरे पट्टीदारो  को गिरफ़्तार कर लिया गया। हम सब को जेल के अंदर डाल दिया गया, और इलाहबाद हाई कोर्ट में केस चलने लगा।

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3 thoughts on “हिम्मत ए मलखान”

  1. आप ने बहुत अच्छा मलखान राय पट्टी का इतिहश् लिखा है।

  2. बड़े बुजुर्गों से सुनी उनकी आपबीती कथा को लिखी में बदलने और एक नयी लोककथा रचने का सराहनीय कार्य।

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