The lover boy of Bahawalpur- हिंदी में संक्षेप

The lover boy of bahawalpur

लेखक

राहुल पंडिता की नई किताब मार्केट में आई है The Lover Boy of Bahawalpur  के नाम से। इससे पहले राहुल पंडिता की एक और किताब आ चुकी है, जिसका नाम है- Our Moon has Blood Clots. और शायद से इसी किताब पर आधारित है एक फ़िल्म शिक़ारा के नाम से। जिसके निर्देशक है विधु विनोद चोपड़ा। राहुल पेशे से पत्रकार है। जो जम्मू और कश्मीर की स्थिति को काफ़ी सालो से कवर कर रहे है।

किताब के बारे में-

यह किताब The Lover Boy of Bahawalpur कई भागो में विभाजित है। सर्वप्रथम हम चर्चा करते है किताब के शीर्षक पर। Bahawalpur पाकिस्तान में स्थित एक जगह है।जहाँ पर जैश-ए-मुहम्मद का एक तरह से मुख्यालय है। यह Lover Boy जैश का प्रमुख व्यक्ति था। जो कि पुलवामा हमले के समय कश्मीर में जैश का कमांडर था। पाकिस्तान में एक बीबी होने के बावजूद कश्मीर में कई सारी औरतों से इसका सम्बंध था। यह वही आदमी था, जो कि जैश मुखिया के निर्देश पर पुलवामा हमले का खाका और प्लानिंग तैयार किया था। इस किताब में  चर्चा है, राकेश बलवल के बारे में जो जम्मू में NIA के प्रमुख है। किस तरह से अपनी जान जोखिम में डालकर  वो जाँच को आगे बढ़ते है। और जाँच के अंत में  पुलवामा हमले का सम्बंध और सबूत जैश ए मोहम्मद से मिलता है। इस किताब में चर्चा है नरेंद्र नाथ धर दुबे की भी। दुबे 2000 के दशक में  कश्मीर में BSF के ऑफ़िसर के रूप में पोस्टेड थे। उनके द्वारा उस समय के आतंकियो , उनका मुक़ाबला, मुखबिरी, और भिड़ंतो पर बहुत ही रोचक ढंग से प्रकाश डाला गया है। किताब का यह भाग भी पढ़ने में बहुत interesting लगेगा।

किताब के चैप्टर

आइए देखते है यह किताब किन चैप्टर में बटी है-
1-  The man with shaky hands
2- A key numbered 1026
3- The buly man in Bahawalpur
4-Balakot
5- The Army of Mohammed in South Kashmir
6-Getting Ghazi Baba
7-The Dwarfish Merchant of Death
8-The Mobile Phone
9-The Lover Boy of Bahawal Pur

फ़र्स्ट चैप्टर

यहा पर सारे चैप्टर की detail में  व्याख्या करना उचित नही होगा। लेकिन इन चैप्टर की मदद से थोड़ा थोड़ा इस किताब की झलक ले सकते है। पहले चैप्टर में पुलवामा में शामिल आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार और उसके साथी शाकिर बशीर के बारे में चर्चा है। किस तरह से वो दोनो मिलकर इस आत्मघाती घटना को अंजाम देते है। उस समय आदिल के मन में क्या चल रहा था। CRPF की बस में बैठे लोगों के बीच कैसा माहौल था। विस्फोट के बाद क्या माहौल था उस जगह पर।

दूसरा चैप्टर

दूसरा चैप्टर – NIA की जाँच पर है, किस तरह से NIA को हमले वाली जगह से कुछ दूर 1026 नाम की चाभी मिलती है। और उसके साथ मिलती है एक हड्डी। उस हड्डी की DNA जाँच से पता चलता है कि हमलावर आदिल अहमद डार था। हमले से पहले इन लोगों ने कार का चेसिस नम्बर और engine नम्बर पूरी तरह से मिटा दिया था। घटना स्थल पर एक दिन बाद मारुति की टीम आती है, और engine खोल कर उसके अंदर लगे रॉड से एक बैच नम्बर निकालती है। इस नम्बर को मारुति के मुख्यालय में जाँचा जाता है।जिससे अंत में गाड़ी का नम्बर और उसके मालिक का पता चलता है।

इस का अध्याय 3 और 4 जैश के मुख्य आलाओ और उनके ट्रेनिंग सेंटर पर है। किस तरह से बहावलपुर से कमांड जारी किए जाते है। और किस तरह से भारत ने हमले के लिए बालकोट को ही क्यू चुना।

चैप्टर 5, 6 और 7 कश्मीर में 1988 से शुरू हुए आतंकवादी संगठनो और उनके मुख्य आतंकियो के ऊपर आधारित है। किस तरह से धीरे धीरे उन्होंने ने कश्मीर में अपना पाव ज़माना शुरू किया।

चैप्टर 8 और 9

चैप्टर 8 और 9 इस किताब का प्रमुख हिस्सा है। The Mobile Phone- NIA की टीम जगह जगह पुलिस स्टेशन में जाकर वहा पर हुए मुठभेड़ और आतंकियो के बारे में जाँच कर रही होती है। इसी जाँच के दौरान March 2019 में हुए एक encountered आतंकी की फ़ोटो हाथ में लगती है। उसकी फ़ोटो और पहनावे को देख कर NIA को लगता है कि वह सामान्य आतंकी नही है। उसके पास से मिली M14 बंदूक़ पर पिले अक्षरों में लिखा होता है AMMAR। उसके पास से दो फ़ोन बरामद होते है। एक आइ फ़ोन और दूसरा सैमसंग गैलिक्सी S 9। इन फ़ोन को NIA अपने क़ब्ज़े में लेकर CERTIN को भेजती है। इस फ़ोन से जो डेटा बरामद होता है वो पुलवामा केस को पूरी तरह सुलझा देता है। यह मारा गया आतंकी कोई और नही बल्कि उमर फारूक होता है। जो की जैश के मुखिया मसूद अजहर का भतीजा होता है। इसके फ़ोन से मिले फ़ोटो और विडीओ की मदद से NIA को पता चलता है कि किस तरह से इस हमले के तार सीधे सीधे जैश से जुड़ रहे थे। यही उमर फारूक था जो lover boy of  bahawalpur है। जिसने जैश के इशारे पर , हमले की गाड़ी, बारूद, आत्मघातीं आतंकी तैयार किया था। 

सुझाव

अगर आप इस किताब को सिर्फ़ इस लिए पढ़ना चाहते है क़ि किस तरह ये केस सॉल्व किया गया। तो हो सकता है मेरी तरह आपको भी निराशा हाथ लगे। क्यूँकि जो जाँच वाले चैप्टर या अध्याय है वो इस किताब के 1/10 वे हिस्से को भी पूरा नही करते। हालाँकि इसमें कश्मीर में 1988 से  फैले आतंकवादी नेट्वर्क़्स का इतिहास और उससे जुड़े लोगों के बारे में कहानिया है। जो बहुत ही ज्ञानवर्धक और रोचक है। 

अगर आप इस किताब को पढ़ना चाहते है तो यहा से ख़रीद सकते है। इस website पर उपलब्ध अन्य किताबों के बारे में पढ़ने के लिए यहा क्लिक करे।

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